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जे नीं हुवै बूढियो / निशान्त
Kavita Kosh से
आखी दुपारी
घर रा सगळा जणां
जद बैठया रैवै
बुद्धू-बगसै रै सांमी
दो सालां रो नांनियो
झूम्यो रैवै
खाट मांय पड़यै
बूढियै स्यूं
कदे बीं री
अैनक छेड़ै
कदे कामड़ी
का खेलतो रैवै
बीं रै आळै-दुआळै
आपरै टूटेड़ै खेलणियै स्यूं
सोचूं - जे नीं हुवै
बूढियो
तो नांनियै रो के हुवै ?