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जैसा दिखता है / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
आसमान जैसा दिखता है
वैसा नहीं है
और न धरती
जैसी दिखती है वैसी है
ठीक नहीं कह सकता कोई
वह कैसा है यह कैसी है
मगर फिर भी अंधी आँखों बहरे कानों
हमें सब कुछ देखना-सुनना पड़ता है
ग़लत देखे–सुने में से
बेकाम का ही सही
कुछ चुनना पड़ता है!