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जोगी हुआ सियार / सुरेश विमल
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जोगी हुआ सियार
घूमता है लेकर इकतारा।
पहन गेरुए वस्त्र
गले में माला मोटी
घुटे हुए सिर पर
नारद जी की-सी चोटी।
वन वन धुआं उड़ाता
जाता धूनी का बंजारा।
निर्भय हो उपदेश, सिंह
को देता है बैरागी,
हिंसा छोड़ सभी जीवों
के बनो बंधु अनुरागी।
रचा राम ने रहने सबको
सुख से, यह संसारा।