भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो न होना था हुआ / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो न होना था, हुआ;
हुआ जो यह हुआ-
अनजाना हुआ।

अब जो आए,
नए आए,
अलौकिक का
नया संस्करण लाए,
मंत्र मारते,
झूमते-झामते-
इतराए।
लौकिक ऊँट की नाक
अलौकिक की नकेल से
नाथने आए;
ऊँट को चोटी पर चढ़ाने आए,
न पाई उँचाई को पाने आए,
न लौकिक ऊँट को नाथ पाए-
न चोटी पर चढ़ा पाए-
न चढ़ पाए-
न निदान समझ पाए-
विह्वल बिलबिलाए।

रचनाकाल: ०३-०८-१९९१