जो होते रास्ते हमवार मेरे / रविकांत अनमोल
जो होते रास्ते हमवार मेरे
तो मेरा साथ देते यार मेरे
है मेरी शायरी मेरा तआरुफ़
मिरी पहचान हैं अशआर मेरे
ग़ज़ल होती है आंखों की ज़बानी
जहां अल्फ़ाज़ हों लाचार मेरे
उसे मैं ही नहीं पहचान पाया
वो आया सामने सौ बार मेरे
क़दम क्या आपने रख्खा है घर में
महक उठ्ठे दरो दीवार मेरे
मिरी मंज़िल तो है नज़दीक़ लेकिन
बहुत हैं रास्ते दुश्वार मेरे
वो मेरा साथ देते दार तक भी
अगर होते वो यारे-ग़ार मेरे
मुझे जब भी ज़रा सी नींद आई
तो सपने हो गए बेदार मेरे