Last modified on 19 जुलाई 2016, at 10:07

ज्ञानमती का तिलक स्वीकार / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

वोल्यो महथ पुरोहित भारी। मिलि मैना दिहु वचन विचारी॥
वहुत अवश्य विवाह विचारी। वचा वंध विधि अन्तर सारी॥
जाय जनावहु विनती राजहिं। हम आज्ञाकारी सब काजहिं॥
महथ पुरोहित राउर आये। नृपहिं आय सब कथा सुनाये॥
सबके जीव अनंद वधाऊ। एक रतन सब ने जन पाऊ॥

विश्राम:-

दिन दस रहे उदयपुर, तिलक चढायो राव॥
वहुरि विदा हवै गवन किय, दियो पंथ पर पाव॥133॥