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ज्योति-करों से स्पर्श करो हे / रामगोपाल 'रुद्र'
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ज्योति-करों से स्पर्श करो हे, काँपें तम के तार!
नीलकुसुम जो कुम्हलाए हैं,
धूल धुलाने ढुल आए हैं;
चरणोदक भर दो इनमें तो अर्घ्य करे संसार!
पाँखों में बन्दी भ्रम का मन
खोले आँख, खिले दर्शन बन;
किरणों पर कलियाँ बलि जाएँ, कलियों पर गुंजार!
फूटे मन के अस्फुट व्यंजन
कुछ मुँह में, कुछ लोचन के धन
तुम स्वर से बाँधो तो ये भी पा जाएँ आधार!