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झब्बूमल की दाढ़ी / प्रकाश मनु

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झब्बूमल की लंबी दाढ़ी,
झब्बूमल हैं निरे अनाड़ी!

बाल बढ़ाए हीरो जैसे
आँखों पर है काला चश्मा,
फिर-फिर शीशा देखा रहे हैं
होगा जैसे अभी करिश्मा।

गुस्सा इन्हें बहुत आएगा,
दाढ़ी को यदि कह दो झाड़ी!

हँसते हैं तो हँसते जाते
रोते हैं तो बस, रोते हैं
फिर इनको आ जाती नींद
सोते हैं तो बस, सोते हैं।

खर्राटे जब चालू होते,
धुकर-पुकर चलती है गाड़ी।

नखरों पर नखरे हैं ऐसे
जैसे यही अनोखेलाल,
भूत विलायत का आया हो
लेकर टुटरूँ-टूँ की चाल।

पैंट नई थी अब्बू जी की,
लेफ्ट-राइट कर-करके फाड़ी!