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झरनी / चन्द्रमणि
Kavita Kosh से
भोरे-भोरे मचि गेलै फगुआ क्षितिज पर
रतुका तिमिर उड़िअएलै जी हाय जी!
उठऽ उठऽ हौ सुरूज पुरूबमे
ललका किरिन नेने अएलै जी।।
कतेक भरोसे मइया तोहरा पोसलकौ
कतेक हुलासे भइया कनहा चढ़ेलकौ
तोरे डरे दोगे-दोगे बिपति नुकअएलै
से दिन पुनि घुरि अएलै जी।। हाय।।
उत्तर हिमगिरी ककरा पुकारै
सिंधु-लहरि रहि-रहि ललकारै
पुरूबक पुरिबा पछिम केर पछिया
रणके बिगुल फुकि गेलै जी ।। हाय जी।।
गज भरि छाती दुगुन भेलै छनमे
धरतीक लाल उतरि गेलै रणमे
लाल-लाल लिधुर तरंगि गेलै तनमे
दुश्मन भाग खटेलै जी।। हाय जी।।
एकटाके मारि दोसर पर लपकै
गरजि-गरजि अरिदल पर झपटै
जनकक धिया जगजननि सियाकें
सुमरि सुमरि आगू बढ़लै जी।। हाय जी।।