भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झर आता है दूध / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
झर आता है दूध
पहाड़ी की छाती से
चिपटी हुई घास
पीती है पलकें मूँदे
कोरों से बह आती हैं
बूँदें।
(1985)