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झर गये पात / बालकवि बैरागी
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झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
--Saurabh2k1 ०९:१२, २ जून २००८ (UTC)