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झाड़ू की नीतिकथा / राजेश जोशी
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झाडू बहुत सुबह जाग जाती है<br\> और शुरू कर देती है अपना काम
बुहारते हुए अपनी अटपटी भाषा में<br\> वह लगातार बड़बड़ाती है<br\> ’कचरा बुहारने की चीज है घबराने की नहीं<br\> कि अब भी बनाई जा सकती हैं जगहें<br\> रहने के लायक.’
० जून १९९०