भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झिंझिर खेलबै हे / कुमार संभव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झिंझिर खेलबै हे सखी
झिंझिर खेलबै हे,
लानोॅ खेलोॅ के सब साज सखी
झिंझिर खेलबै हे।

नथिया संग नकबेसर लानिहोॅ
डड़कस लानिहोॅ हे,
मांगोॅ के मनटीका सखी
लानी के दिहोॅ हे।

गल्ला पिन्हबै हार सखी
हौंसली पिन्हबे हे,
हाथोॅ में पोंहची पिन्हबै
कंगन पिन्हबै हे।

गोड़ोॅ में काड़ा-छाड़ा
पायल शोभतै हे,
औंगरी में विछुआ सखी
अंगूठी पिन्हबै हे।

वरषा के खेल झिंझिर
सखी तोंय जट्टा बनिहोॅ हे,
हम्में बनबै जटनिया
मन भर नाच करबै हे,
झिंझिर खेलबै हे सखी
झिंझिर खेलबै हे।