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झुक जाय बादली बरस क्यूँ ना जाय / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
झुक जाय बादली बरस क्यूँ ना जाय
उत क्यूँ ना बरसो बादली जित म्हारा बीरा री देस
उत मत मरसे ए बादली जित म्हारा पिया परदेस
तम्बू तो भीजै तम्बू की रेसम डोर
चार टका दें गांठ का जे कोए लसकर जाय
वै लस्करियां न्यूँ कहो थारी घर बाहण का ब्याह
काला पीला जो कापड़ा कोए कन्या द्यो परणाय
चार टका दें गांठ का जे कोए लसकर जाय
वै लस्करियंा न्यूँ कहो थारी माय मर्यां घर आय
माय नै दाबो बालू रेत में ऊपर सूल बबूल
चार टका दें गांठ का जे कोए लसकर जाय
वे लस्करियां न्यूँ कहो थारै कुंवर हूयो घर आय
कोठी चावल घी घणो बैठी कुंवर खिलाय
चार टकां दें गांठ का जे कोए लसकर जाय
वे लस्करियां न्यूँ कहो थारी जोय मर्या घर आय
जोय नै दाबो चम्पा बाग में ऊपर साल दुसाल
झुक जाय बादली बरस क्यूँ ना जाय