भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झुमके अमलतास के / सरोज कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीत गए केशरिया दिन
पलाश के
ले लो, ले लो, झुमके अमलतास के!
1
ओ पीपल, नीम, बड़ सुरजना
कौन जिसे नहीं है मुरझना?
डलिया में दो दिन
सौ दिन के फूल
कोई फिर क्यों मुरझे बिन हुलास के ?
ले लो , ले लो झुमके अमलतास के!
2
झूल रहे चमकीले सौ-सौ फानूस,
इंकलाब? पीली तितलियाँ के जुलूस!
सूरज के घोड़े बहकें –
ऐसी आग,
धूप निकल भागी है, बिन लिबास के,
ले लो, ले लो झुमके, अमलतास के!
3
मौसम के हाथों पर मेहँदी के चित्र
धु,धु दोपहरी, ये तपस्वी विचित्र!
किसकी बिरुदावली के ये
स्वर्ण मालकौस
कोई बतला दे, ये तलाश के,
ले लो, ले लो झुमके अमलतास के!