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झूठ के बड़े क़िस्से / सुरेश सलिल
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झूठ के बड़े क़िस्से
खिड़की भर आसमान सिर्फ़ सत्य के हिस्से
सत्य का न ज़िक्र तक आता अख़बारों में
उसे गिना जाता है आज गुनहगारों में
भूख को खाता और प्यास को पीता है
सपनों संकल्पों के साथ लगा जीता है
टूटेगा नहीं वह, तुम कितने ही दो घिस्से