भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूमर / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

ननद मेरी छोटी बड़ अलबेली,
सजाबे रोज जूड़ा चंपा, चमेली।
ननदोई बिनु लागै सूनी हबेली;
रात नहीं सोये, दिन में खोई-खोई।

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

फागुन महीना बड़ अलबेला,
ढोलक मंजीरा मचाबे बवेला,
चिहुँह-चिहुँह जागे सोये के वेला
कैसे समझाऊँ सिसक-फफक रोई,

बुला दे रे कागा मोरा ननदोई। ।3।
दे दूँगी तुमको कहेगा जोई सोई। ।2।

-मुक्त कथन, वर्ष 31 अंक-29, 11 मार्च, 2006