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झूम रही है वायु बसंती / राहुल शिवाय

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फागुन के आते ही जैसे
निकल पड़े हैं वायु के पर
झूम रही है वायु बसंती,
नवल ख़ुशी तन-मन में भरकर

महुआ पी वायु इठलाती,
कभी पुष्प से गंध चुराती
उपवन की हरयाली के संग
मंद-मंद हरपल मुस्काती
पल्ल्व हिलते राग बजाते,
मीठी-मीठी तान सुनाते
भँवरा जाता है गुंजन कर

झूम रही गेंहूँ की डाली
चूम रही बाली को बाली
साथ दलहनी भी इठलाती
बायु बसंती है मतवाली
बहती उपवन-उपवन, कानन
निर्झर-निर्झर सा इसका मन
खूब झुमाती सरसों-तरुवर

दहक रहे टेसू कण-कण में
नई चेतना है हर मन में
नई कोंपलें, मंजर छाए
छाया जोश नया जीवन में
शंख फूंकती सभी दिशाएँ
झूम रही हैं नव आशाएँ
जैसे झूम रहा पतंग है
नभ में अपना तन फैलाकर