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झूला / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
झूले पर कोई नहीं बैठा है
लेकिन झूला हिल रहा है
शायद झूले पर
हवा बैठी है
शायद झूले पर उनकी स्मृतियाँ बैठी हैं
जो झूले से अब दूर जा चुके
कोई न कोई ज़रूर बैठा है इस झूले पर
जो झूला हिल रहा है
इस तितली को कोई वज़न नहीं
इस तितली से ज्यादा हल्का कोई न होगा
इस वक़्त यह तितली बैठी है झूले पर
और झूला हिल रहा है।