भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टीचर गुड़िया / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चश्मा लगाके गुड़िया,
लगती जवान बुढ़िया।

कुछ बड़बड़ा रही है,
किसको पढ़ा रही है?

गुड्डे को है पढ़ाती,
उसको सबक़ सिखाती।

थोड़ा-सा मुस्कराकर,
गुड़िया को मुँह चिढ़ाकर

पढ़ता है पाठ गुड्डा,
करता है ठाठ गुड्डा!