Last modified on 10 मई 2009, at 13:50

टूटते भी हैं‚ मगर देखे / कमलेश भट्ट 'कमल'

टूटते भी हैं‚ मगर देखे भी जाते हैं

स्वप्न से रिश्ते कहाँ हम तोड़ पाते हैं।


मंज़िलें खुद आज़माती हैं हमें फिर फिर

मंज़िलों को हम भी फिर फिर आज़माते हैं।


चाँद छुप जाता है जब गहरे अँधेरे में

आसमाँ में तब भी तारे झिलमिलाते हैं।


दर्द में तो लोग रोते हैं‚ तड़पते हैं

पर‚ खुशी में वे ही हँसते-मुस्कराते हैं।


ज़िन्दगी है धर्मशाले की तरह‚ इसमें

उम्र की रातें बिताने लोग आते हैं।