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टेबिल / विष्णु खरे

टेबिल

उन्नीस सौ चालीस के आसपास
जब चीजें सस्ती थीं और फर्नीचर की दो-तीन शैलियाँ ही प्रचलित थीं
मुरलीधर नाजिर ने एक फोल्डिंग टेबिल बनवाई
जिसका ऊपरी तख्ता निकल आता था
और पाए अंदर की तरफ मुड़ जाते थे
जिस पर उन्होने डिप्टी कमिश्नर जनाब गिल्मोर साहब बहादुर को
अपनी खास अंग्रेजी में अर्जियाँ लिखीं
छोटे बाजार की रामलीला में हिस्सा लेने वालों की पोशाक
चेहरों और हथियारों का हिसाब रखा
और गेहुएँ रंग की महाराजिन को मुहब्बतनामा लिखने की सोची
लेकिन चूंकि वह उनके घर में नीचे ही रहती थी
और उसे उर्दू नहीं आती थी
इसलिए दिल ही दिल में मुहब्बतनामे लिख-लिखकर फाड़ते रहे
और एक चिलचिलाती शाम न जाने क्या हुआ कि घर लौट
बिस्तर पर यूं लेटे कि अगली सुबह उन्हे न देख सकी
और इस तरह अपने एक नौजवान शादीशुदा लड़के
दो जवान अनब्याही लड़कियों और बहु और पोते को
मुहावरे के मुताबिक रोता-बिलखता लेकिन असलियत में मुफलिस
छोड़ गए

टेबिल, जिस पर नाजिर मरहूम काम करते थे
और जो करीब-करीब नई थी
मिली उनके बेटे सुन्दरलाल को
जिनका एकमात्र सपना डाॅक्टर बनने का था, उस बच्चे का बाप नहीं
जिसे असमय ही उनकी घरवाली ने उन पर थोप दिया था.
जमाना हुआ मंदी का, नौकरी मिलती नहीं थी
किसी ने जँचा दिया मिलटरी की अस्पताली टुकड़ी में भर्ती हो जाओ
वहाँ डाॅक्टर बना देते हैं
सो वे हो गए दाखिल मेडिकल कोर में
और बर्मा फ्रन्ट पर एकाध बार चोरी-छुपे घायल हुए
और भेजा अपनी घरवाली रामकुमारी को एक रोबीला फोटो
जिसे रखा रामकुमारी ने टेबिल पर
और पालती रहीं तपेदिक बलगमी रातों में
(ननदों में से एक बैठ गई हलवाई के घर
और दूसरी मर गई जिस तरह देर तक अनब्याही जवान लड़कियाँ
मर जाती हैं अचानक)
रखती रहीं फूल और ऊदबत्ती और उपास
और हारमोनियम भी वहीं रखा
जो कलकत्ते से मंडाले जाते वक्त भिजवाया था सुन्दरलाल ने और जिसे लेने
रामकुमारी बच्चे के साथ गई थीं पहली और आखिरी बार रेलवे माल
गोदाम
और पहली और आखिरी बार ही बैलगाड़ी पर
बैठकर आई थीं घर उसे छुड़वाकर

(जाहिर है) बड़ी लड़ाई के दर्म्यान और बावजूद
टेबिल बमय हारमोनियम और फोटो उसी कोने में खड़ी रही
और छँटनी के बाद भूतपूर्व जमादार सुन्दरलाल मेन्शन्ड इन डिस्पैचेज
जब वापस आए तो टेबिल पर पड़ी अपनी तस्वीर
और बिस्तर पर रामकुमारी को देखकर
उन्होने उस तरह अपना चेहरा सिकोड़ा
जिसे बर्मा के जंगलों में मुस्कराहट समझने की उनकी आदत पड़ गई थी
और कहा - अच्छा.

लेकिन कुछ भी (जिसमें रामकुमारी भी शामिल थीं)
अच्छा नहीं हुआ और
विधुर सुन्दरलाल ने, जिनका विश्वास भावनाओं के
भद्दे प्रदर्शन में नहीं रह गया था,
अपना फोटो तो टेबिल से हटा लिया
साथ ही रामकुमारी की भी तस्वीर उस पर नहीं रखी
क्योंकि कोई थी ही नहीं. फिर एक वाजिब अंतराल के बाद
वे बैठे टेबिल पर अर्जियाँ लिखने
और बेकारी, बेगार, क्लर्की और मास्टरी से गुजरते हुए
हेडमास्टरी को हासिल हुए
और उसी टेबिल पर केरल के ज्योतिषी को जन्मपत्री की नकलें
शिक्षा-उपमंत्री को सुझाव
हाईस्कूल बोर्ड के सेक्रेटरी को इम्तहान की रिपोर्ट
संभाग शिक्षा निरीक्षक को तबादले की दलीलें
और मातहतों की कान्फिडेंशियल लिखते हुए
(और यह सब करते वक्त एक असंभव तथा करुण आवाज निकालते हुए
जिसे वह अलग-अलग समयों पर अलग-अलग शास्त्रीय राग
के नाम से पुकारते थे)
पचास वर्ष की अपेक्षाकृत अल्पायु में एक सरकारी अस्पताल में मरे
और अपनी विधुर गृहस्थी का सामान टेबिल समेत छोड़ गए

अपने बेटे को जो अब बड़े शहर में
गंजा और भद्दा होता हुआ एक मँझोला अफसर था
और जो बाकी सामान को ठिकाने लगा
सिर्फ टेबिल, चूँकि वह फोल्डिंग थी और आसानी से ले जाई जा सकती थी,
साथ ले आया
और जब फर्नीचर वाले ने कह दिया कि वह तो बहुत पुरानी हो चुकी है
और उस पर सनमाइका लगवाना भी बेकार है
तो उसने उस पर गैरजरूरी किताबें, पुराने खत, बेकार दवाइयाँ और
कंपनियों के सूचीपत्र,
टूटे और गुमे हुए तालों की चाबियाँ, जापानी दूरबीन
और टाइपराइटर की घिर्रियाँ रख दीं
जिनमें उसकी तीन बरस की लड़की की जायज और भरपूर दिलचस्पी थी
और जो टेबिल के पायदान पर खड़ी होकर
उसी तरह इस आश्चर्यलोक को फैली आँखों से देखती थी
जिस तरह चौबीस बरस पहले
यह अब गंजा और तुंदियल होता हुआ मँझोला अफसर
उझककर झाँकता था उस आइने में
जिसमें सुन्दरलाल बाएँ गाल को जीभ से उभारकर
दाढ़ी बनाते हुए भैंगे होकर देखते थे
(नाक के तीखेपन और जबड़े की लम्बाई में मरहूम मुरलीधर
का असर शायद पहचानते हुए)
और टेबिल के हिलने की वजह से
वह थोड़ा-थोड़ा हिलता था.