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ठहर ज़रा ओ जाने वाले / शैलेन्द्र

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ठहर ज़रा ओ जानेवाले – 2
बाबू मिस्टर गोरे काले
कब से बैठे आस लगाए
हम मतवाले पालिशवाले
ठहर ज़रा ओ जानेवाले
बाबू मिस्टर गोरे काले
कब से बैठे आस लगाए
हम मतवाले पालिशवाले …

ये काली पालिश एक आना
ये ब्राऊन पालिश एक आना
जूते का मालिश एक आना
हर माल मिलेगा एक आना
न ब्लैस्म न पाखौड़ी है
न पगड़ी है न चोरी
छोटी सी दुकान लगाए
हम मतवाले पालिशवाले …

मेहनत का फल मीठा-मीठा
हाँ भई, हाँ रे ...
भाग किसी का रूठा-झूठा
ना भई, ना रे ...
मेहनत की एक रूखी रोटी
हाँ भई, हाँ रे ...
और मुफ़्त की दूध-मलाई
ना भई, ना रे ...
लालच जो फोकट की खाए
लालच जो हराम की खाए
हम मतवाले पालिशवाले …

पण्डित जी मन्तर पढ़ते हैं
वो गंगा जी नहलाते हैं
हम पेट का मन्तर पढ़ते है
जूते का मुँह चमकाते है
पण्डित को पाँच चवन्नी है
हम को तो एक इकन्नी है
फिर भेदभाव ये कैसा है
जब सब का प्यारा पैसा है
ऊँच-नीच कुछ समझ न पाए
हम मतवाले पालिशवाले …

(फ़िल्म - बूट पॉलिश)