ठाठ भीतर बैठ ग्या जा कै / मेहर सिंह
एक समय की बात है कि रत्नपुरी नगर में राजा जसवंत सिंह राज करते थे। राजा का एक ही पुत्र था जिसका नाम रणबीर सैन था। उसी नगर में सूरजमल नाम का एक सेठ भी रहता था जिसका लड़का था चन्द्र दत्त। रणबीर सैन और चन्द्रदत्त दोनों जिगरी दोस्त थे। एक दिन दोनों जंगल में शिकार खेलने चल पड़ते हैं वे दानों अलग-अलग मृगों का पीछा करते हुए दोनों साथी वन में बिछड़ जाते हैं राजकुमार एक सुन्दर बाग में पहुंच जाता है उस बाग में अन्दर एक आलीशान महल और सुन्दर जल से भरा हुआ तालाब था। रणबीर सैन उस महल में पहुंच जाता है और एक कमरे के सामने जाकर सोचता है और क्या कहता है-
देखी साकल खोल कै इस कमरे के
ठाठ भीतर बैठ ग्या जा कै।टेक
कमरा मेरी निगाह में आग्या, सब सौदा मन भाग्या
मैं देखण लाग्या बोल कै, घले मूढे निवारी कुर्सी खाट
कोए तकिया छोड़ग्या लाकै।
काम कर राक्खे इसे, इसकै बहोत लगा दिए पीसे
शिशे भर दिए तोल कै कमरा ना महल तैं घाट
झांकी छोड़ दी म्हां कै।
लगे थे बर्फ के हण्डे झारी से जल भरे ठण्डे
दो पौन्डे धर लिए छोल कै एक पत्ते पै धरी चाट
जरा सी देख ल्यूं खाकै।
काया के कटज्यां फंद भोग लिए ऐश आनन्द
लख्मीचन्द धरै सै छंद टटोल कै कहै मेहरसिंह जाट
छोहरां म्हं गा कै।