भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठूँठ रा लोग / आशा पांडे ओझा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतिहास रा पानड़ा
खुंजिया अर खाकां माय
 दाबियोड़ा
जाणे किता क जलम
 भेर फुंगीजता रेइ
 ए ठूँठ रा लोग
 जाणे क्यूं कोनी आवै
एणी हमज में
इतिहास बणण अर बणाण खातर
कुरबान करणा पडै है
वरतमान रा छिण-छिण
जिका री तो
कोई नै गिंनर इ कोनी
मरियोड़ा साँप री
 लकीर कूटता
 खुद रे इज पगां माथे
डांग बजा रिया है
 ठूँठ रा लोग