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ठोकर लगे पाँव में / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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ठोकर लगे पाँव में
          सहलाते रहिए ।
आँसुओं को पोंछकर
           कुछ गाते रहिए ।
ज़िन्दगी को बोझ क्यों
          कहा हैं आपने
खुशबू का समंदर यह
         नहाते रहिए।
डूबने को जा रही अब
        साँस की किरन ।
बस्तियों में चाँदनी
      छिटकाते रहिए
आचरण के पैर जिनके
     कट गए यहाँ
उनको हटा नई राह
         बनाते रहिए ।
       -0-[1-9-93: सैनिक समाचार 26-अक्तुबर93, अमृत सन्देश 20-3-94]