भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डंडा-डोली पालकी! / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
डंडा डोली पालकी,
जय कन्हैयालाल की!
आगे-बागे टूल के,
झाँझ-मँजीरे कूल के,
शंख समंदर-कूल के,
ढपली धुर बंगाल की!
जय कन्हैयालाल की!
कमर करधनी काँस की,
वंशी सूखे बाँस की,
जिसमें जगह न साँस की,
झाँकी बड़े कमाल की!
जय कन्हैयालाल की!
माखन-मिसरी घोलकर,
मन-भर पक्का तोलकर,
खाते हैं दिल खोलकर,
रबड़ी पूरे थाल की!
जय कन्हैयालाल की!