भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / प्रेम साहिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डर के मारे
मैंने जिस क हाथ थामा
वह डर ही था

डर के मारे
मैंने जिस की पूजा की
वह भी डर ही था

डर के मारे
मैं जिस घर में घुसा था
वह डर का था

डर के मारे
ये भी न जान सका
कि डर तो
डर का नाटक करता था
मुझे डराता था, ख़ुद डरता था।