भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डांखळा 3 / शक्ति प्रकाश माथुर
Kavita Kosh से
हीरो जड़्यो गणेशजी री मूरती रा दांत रै।
देख्यो जणा चोरी करण, चोर चढ़ग्यो चांत रै।।
हीरै कांनी झपट्यो।
बिनायक जी प्रगटयो।।
सूण्ड मैं पळे’ट फैंक्यो, बीस कोस आंतरै।।
‘सदीकड़ै’ र ‘नूरीए’ फिल्म देखली ‘सोले’।
‘तेरा क्या होगा रे कालिया’ आपसरी में बोले।।
मोलवी जी का चढ़ग्या पारा।
‘काळू खां’ था नाम बां’रा।।
झाल घण्टड़ी दोन्यूआं के चेपे दस दस ठोले।।
नूंई लागी दफ्तर में एक फूठरी सी छोरी।
सारै दिन मटरका करती काम मैं ही कोरी।।
झांक-झांक’र बांकी।
अफसर, कलरकां की।।
अकल लागी काढ़ण कै कै, हाय, प्लीज अर सॉरी।।