भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डायरी / प्रिया जौहरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुरानी रवायतों को तोड़कर
रोज नया मिज़ाज रचाती है
डायरी पर लिखी तारीखे बूढ़ी हो जाती है
पर लेखनी की संवेदना बूढ़ी नहीं होती
डायरी मुश्किल वक़्त की साथी है
ये एक डार्क रूम है जहाँ
निजता और संघर्ष
जीवन की स्मृतियाँ तहाकर रखी है
ये आत्मा की दरकार है
और चिंताओं का पता भी
यहाँ ज़िन्दगी की ध्वनियों को सुना
जा सकता है या यूं कहूँ
अव्यक्त को व्यक्त करने की कोशिश
मुझे लिखना नहीं आता
रोज लिखती हूँ
और बार-बार हार जाती हूँ
अपनी डायरी में अपना शिल्प खोजती हूँ
यहाँ अपनी भाषा और भावों का दोआब बन सके
डायरी कोलाज की शक्ल में जीवन का आख्यान है
जिसमे मैं हूँ और मेरा बेचैन मन
इस डायरी में लिखते हुए
महसूस होता है
मेरी अनुभूति मेरे साथ है
इस हाहाकारी समय में इसे
कायम रखना कोई मामूली बात नहीं ।