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तड़प / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
नजर सेॅ, नजर मिलाय केॅ;
दुयोॅ पचताय छेॅ घोॅर जाय केॅ।
कहाँ पैबोॅ, कहाँ जैबोॅ,
केना मिलबोॅ, केना फूलबोॅ;
नञ गेलोॅ, पता बताय केॅ।
नजर संे नजर मिलाय केॅ,
दुयोॅ पचताय छेॅ घोॅर जायकेॅ।
दिन-रात तड़पै छीं, चाल बहकै छै,
बाहीॅ फड़कै छैॅ, आँख चहकै छैॅ
नै लेल्हाँ, प्रेम बढ़ाय केॅ।
नजर-सेॅ-नजर मिलाय केॅ।
दुयोॅ पचताय छेॅ घोॅर जाय केॅ।
सपना में देखै छीं, अपना में खोजै छीं,
जवानी केॅ कोसै छीं, दुःख भोगै छीं।
नञ देलकै "संधि" , समझाय केॅ।
नजर-सेॅनजर मिलाय केॅ,
दुयोॅ पचताय छै घोॅर जाय केॅ।