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तनहाइयाँ / लता अग्रवाल
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कल तक तेरे हुस्न के
चर्चे थे महफ़िल में
उतरी हुस्न की खुमारी
महफ़िल में तनहाइयाँ है तारी।
एक इश्क़ है खुदा
एक इश्क़ है इबादत
बाकी तो सब गुमनाम
परछाइयाँ हैं सारी।
तू अज़ीज़ है मुझे
तेरी हर शै प्यारी है मुझको
तुझे मुस्कुराता देखने की
गुस्ताखियाँ हैं ये सारी।
तू जो संग है आसां है सफर
कड़कती धूपमें ए हमसफ़र
इश्क की ये सौगात
अमराइयाँ हैं सारी।
हवा का झौंका जब-जब
उड़ाता है आकर जुल्फें मेरी
सोचता हूँ, छूकर आई तुझे
पुरवाइयाँ ये सारी।