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तन्हा पेड़ / प्रभात
Kavita Kosh से
पेड़ यूँ बारिशों में गाता भी है
पेड़ यूँ हवाओं के घर में
अपने दिन बिताता है और रातें भी
पेड़ यूँ सुबह की धूप में
हरा नर्म चमकता है
पेड़ यूँ खींचता है इतना अपनी तरफ़
कि उससे शादी करने का लालच आए
वही पेड़ किसे प्यार करता है किसे मालूम
उन चिड़ियों को भी क्या मालूम
जो उसकी फुनगियों पर झूल-झूल जातीं हैं
उन चिड़ियों की उन आँखों को भी क्या मालूम
जिन आँखों से वे उसे देखतीं हैं
उन चिड़ियों में से एक
उस चिड़िया को भी क्या मालूम
जो बस यूँ ही कभी-कभार
गाहे-बगाहे चाहे-अनचाहे
तब भी आ बैठती है पेड़ की टहनी पर
जब वह तन्हा होता है
वह बतला नहीं सकता कि वह तन्हा है