तन सजाना पड़ेगा / प्रेमलता त्रिपाठी

मिला जो मनुज तन सजाना पड़ेगा।
ऋणी हम धरा के चुकाना पड़ेगा।

दिशाहीन होकर भटकना नहीं है,
सही लक्ष्य ले पग बढ़ाना पड़ेगा।

विविध कर्म साधन करें साधना हम,
सजे भाल सीकर बहाना पड़ेगा।

विकल हो कहीं हम विवश खो न जाये,
सतत ज्ञान वापी नहाना पड़ेगा।

नहीं मंत्र पूजा मिले मुक्ति जीवन,
मिथक भाव मन से हटाना पड़ेगा।

मिटे मूढ़ता पूर्ण घातक कलाएँ,
विकट त्रासदी को मिटाना पड़ेगा।

लगन, प्रीति, निष्ठा धरोहर हमारी,
सुधा प्रेम मधुरस लुटाना पड़ेगा।

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