भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तपन / नन्दल हितैषी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कछार के / इस टीले के नीचे
बबूल के कुछ ठूँठ ......
आक्रोश में
तमतमाया सूरज.
बेवाई
पाँव में नहीं
सिर में फट रही है.
नागफनी की परछाई भी
एक गौरैय्ये को
भली लग रही है.
जिसकी छाँव में
काँटॆ ही काँटॆ?