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तब जब सब कुछ बिकता है / राजेन्द्र गौतम
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तब जब सब कुछ बिकता है
बेटा कविता लिखता है
चूल्हे में सपने झोंके
रोटी-सा ख़ुद सिकता है
दिन भी ठोकर खाता है
इसको भी कम दिखता है
हाथ रचेंगे बिटिया के
वह मेहँदी-सा पिसता है
घाव समय से कब भरता
घाव समय-सा रिसता है