तय रहेगा यही परस्पर / कुमार विमलेन्दु सिंह
सत्य जानकार तुझको साथी
चला किया था तेरे पीछे
तय हुआ था यही परस्पर
मैं तुझको तू मुझको सींचे
आभासों का रत्नाकर ही
बहा करेगा इस धरा पर
शब्द विश्व ही रच देंगे हम
ईप्साओं का जगत मिटाकर
वर्ण सारे सृष्टि को देकर
रहा करेंगे हम धवल
संचित कर के गीत हमारे
तना करेगा युग नवल
पीड़ा का आलिंगन कर
तब हमने ऐसा सोचा था
उन्मुक्त्त कंठ-स्वर से हमने
उन क्षिप्र क्षणों को रोका था
अश्रु की वृष्टि हुई थी
आनन सबने धोया था
अधर कम्पित थे मेरे भी
औ' तू भी तो रोया था
घायल रहा ह्रदय तेरा भी
मेरी भी अग्नि प्रबल रही
दिनकर के संग नित्य जलात
अंतर-ज्वाला मैंने भी सही
आकार नहीं हम ले पाए
ना कर पाए कोई व्यापार
जीतने ही खिंचे, उतने ही टूटे
न हो पाया कोई विस्तार
व्योम पर भी स्थिर न हुए
न मिल पाया भूमि का अंश
वायु के संग भटक रहे हम
झेल रहे क्षणों का दंश
विश्व-विधान समझ ना पाए
न बन पाए हम कभी विशेष
वायु के संग विचरण करेगा
पर सदा-सर्वदा हमारा शेष
प्राण बनकर किसी देह में
अगले युग में आयेंगे
आज शिखर से च्युत भले हम
तब हम ही शिखर कहलाएँगे
विजय जानकर तुझको साथी
चला करूँगा तेरे पीछे
तय रहेगा यही परस्पर
मैं तुझको, तू मुझको खींचे