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तलाशी / पंकज सिंह
Kavita Kosh से
वे घर की तलाशी लेते हैं
वे पूछते हैं तुमसे तुम्हारे भगोड़े बेटे का पता-ठिकाना
तुम मुस्कुराती हो नदियों की चमकती मुस्कान
तुम्हारा चेहरा दिए की एक ज़िद्दी लौ-सा दिखता है
निष्कम्प और शुभदा
(रचनाकाल:1976)