तलाशी के बहाने / निदा नवाज़
चिनार के बूढ़े पत्तों की तरह
झर जाते हैं हम
रुकवाते हैं वे हर मोड़ पर
गाडी हमारी
अभद्र भाषा में
हमें कहा जाता है
उतरने के लिए
कांपते कांपते ढल जाते हैं
एक कतार में
बारी-बारी की जाती है
तलाशी हमारी
वे छीन लेते हैं हम से
हमारा आत्म सम्मान
हमारी गैरत
वे हमारा स्वागत करते हैं
संसार की हर नग्न गाली से
घायल होजाता है हमारा विवेक
सिसक जाता है हमारा ज़मीर
विरोध भी नहीं कर सकते हम
इन नग्न गालियों के विरुद्ध
ऐसा करने पर वे
होजाते हें नाराज़
लगा लेते हैं लेबल
आतंकवादी होने की
और मार देते हैं
किसी फ़र्ज़ी झड़प में
हम चहरों पर लेप लेते हैं
फीकी मुस्कुराहटें
उन्हें ख़ुश करने की ख़ातिर
वे हमारे सीनों पर
बंदूक की नाल रखकर
छीन लेते हैं हम से
हमारी शर्म हमारी लज्जा
वे टटोलते हैं
शरीर का एक एक अंग
हमारे साथ सफ़र करने वाली
औरतों का
तलाशी के बहाने
वे कहलवाते हैं हम से
“भारत माता की जय”
कितना कठोर लगता है
उस समय
नंगी गालियों के बदले
कहलवाया गया
अपने ही देश का यह
प्यारा सा नाम
और कितना कम फ़र्क़ दिखता है
उस समय
एक रक्षक और
आतंकवादी के बीच.