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तल्ख़ लफ़्ज़ो के ऐसे वार हुए / सिया सचदेव
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तल्ख़ लफ़्ज़ो के ऐसे वार हुए
तीर जैसे जिगर के पार हुए
लम्हा लम्हा बिखर गयी साँसे
और सपने भी तार तार हुए
दरबदर आज हम भटकते है
उनकी चाहत में ऐसे ख़वार हुए
आज दिल को ज़रा सा समझाया
आज फिर हम न बेक़रार हुए
दिल की बस्ती उजाड़ ली हमने
वो ज़रा भी न शर्मसार हुए
वो तो बस खेलते रहे दिल से
आज तक हम न होशियार हुए
दोष किस पर धरे सिया हम तो
सिर्फ हालात के शिकार हुए