भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तस्लीमा नसरीन : दो / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
उठाए उसने
अभिव्यक्ति के खतरे
उठाया हमने
सिर पर आकाश
उधेडी उसने सीवन
सी लिए हमने होठ
उसने कहा लज्जा !
हमने कहा -
खास नहीं
उस पर मंडराए बादल
हमने खोलीं छतरियां
उसने मांगी शरण
हमने दी काल-कोठरी
वह बुदबुदाती रही
कोलकाता
कोलकाता
फुटनोट
चली गई हमारे देश से
बाला तली हमारे देश से