ताडे़ गिरल खजूरे अँटकले / विनय राय ‘बबुरंग’
हमें आजादी अइसन मिलल का कहीं हम भइया हो।
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।
होड़ लगल बा केतना लूटीं अइसन लूटम लूट मचल बा
स्वारथ खातिर भाई-भाई से घर में खूनम खून सनल बा
कहीं किनारा लउके नाहीं जिनिगी क उलझन रहिया हो
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।
कइसे बढ़ी विकास देस में बिजुली खेले आंख मिचौली
संसद भइल अखाड़ा अइसन तूँ तूँ मैं मैं लोला-लोली
मुक्ती के दिन कइसे आई भटकल बा जब दुनियां हो
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।
कल कारखाना नगर के खातिर केतने जंगल बाग कटाइल
सड़क सुन्दरी खातिर लाखों लाख में केतने पेड़ ढहाइल
त कइसे पानी बरसी चटकल मौसम क कमरिया हो
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।
भगत क सपना सपने रह गइल आतमा भी ना खूस भइल
जे जीयल ऊ पोछ डोलावल कुछ कवरा पा खूस भइल
के कइसन बा चेहरा झलकल कइसे बदली समइया हो
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।
जिनिगी रोवे रात-रात भर हाय! आजादी कहाँ गइल
सारी जिनगी सोसड़ जरिये दही लेखा ई महा गइल
फिर मुकुती क बिगुल बजा दल दल से निकालऽ नइया हो
ताड़े गिरल खजूरे अंटकल साँच कहीलां भइया हो।।