भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिरंगा / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नन्हे हाथों से
थाम कर
राष्ट्रध्वज
कह रही
नन्ही बिटिया
कम न समझना हमें
उन बेटों से
जो बलिदान हो रहे हैं
देश की रक्षा में
दे रहे हैं
अपने प्राण
हंसते हुए जाते हैं
घर से
और लौटते हैं
तिरंगे में लिपट कर ।
हमें भी प्यारा है
देश का सम्मान
उसकी आन
देने को तत्पर हैं
अपनी जान
इसीलिए
हाथ मे है
तिरंगा
हमारा निशान
हमारी जान
हमारा सम्मान ....