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तिरवाळा तावड़ै रा / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
धम-धम बाजी
सईकां बाजी, बाजै अजूं ही
पण नीं फाटयौ म्हारो काळजौ
पुतियौ पोतीजै
काळ रो कळमस चेरै
आंख्यां में पीळियो ऊंधीजै आए साल
रेत री पांख्यां बैठ देख्या
अठी-उठी रा खूंट
सै’रां रा सै’र नाप्या,
पूछयौ चलवां-चैजारां रो
गादी ओपता सैणां नै
म्हारी जंूण सूं आंध्यां
कद तांई करैला खेला
आंगळी सूं लीकी जकी
नैर री मरोड़र
कद हुवैला ऊभी पाळ
म्हरा आगोतर गिटते
बिना दांतां रै बांबी सरीखे
बाकै आगै कद लागैला डाटौ
बड़कां री दीठ में
दीस्यौ रातींदौ
म्हें ही लपेटी
चूलै री राख री पाटी
पूरबलां धोंता-धोंता पड़गी चांदयां माथै
दीनी समदरियै पूठ
बीं दिन सूं
पछबाड़ै पड़ियौ कळपीजूं
पूरब-सा सोंवता धणियां
कों तो बोलो।
कतरा सईका आंता रैसी
म्हारी आंख्या में
तिरवाळा तावड़ै रा ?