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तीन : सत्यभामा / धूमिल
Kavita Kosh से
सूर्योदय :
- घोड़े के टाप के नीचे
- नींद का कुचला हुआ चेहरा है
- और मुँह के फीके स्वाद में
- एक सपना तैर रहा है ।
अपने दाँतों के नीचे से खींचकर निकालता हूँ
रात की नंगी देह
जहाँ ख़बर होने से पहले ही
शहर ख़त्म हो चुका है । उबासियों में ऊंघते
तुम्हारे नितम्ब
फून की तरह, युवा नज़रों के इशारे पर
टंकित करते हैं ।
- "हलो हलो" करते हुए ।
देह के अंधेरे में
- नीली नस नाड़ियों वाला,
उत्तेजित चमड़ा चिल्लाता है
और मेरी जांघें, भाषा के खिलाफ़--
शहर-कानून का उल्लंघन करती हैं ।
खिड़की से कुछ पूछता है पेड़
और लड़की से कुछ
युवा लड़का पूछता है
क्या दोनों एक ही सवाल
पूछते हैं ?