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तीसरे की नज़रों से / भूपिन्दर बराड़
Kavita Kosh से
मैं कह रही थी
कहते ही वह झाँकने लगी खिड़की से बाहर
कहो, सुन रहा हूँ मैं
कहा उसने उसने खीझ को छुपाते हुए
उन्हें ऐसा करते हुए
देख रहा था
लाचार खाली नज़रों से
वह तीसरा इंसान
जो पड़ चुका था अकेला
जो अकेलेपन से परेशान था