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तुमने विदा कहा / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
हम रोये, सजनी,
उस दिन
जब तुमने 'विदा' कहा
शब्द नहीं था
वह था साँसों का विराम होना
पर्व हृदय के जितने भी थे
उनका ही खोना
देह हुई निष्फल
उसका ज्यों सारा रक्त बहा
एक कसौटी फूलों की थी
वह भी नहीं रही
गाथा सपनों की खोई
जो हमने साथ कही
जीने को
जैसे था बाकी
कुछ भी नहीं रहा
हुईं खोखली इच्छाएँ सब
रंग हुए सूने
तुम बिन, सजनी
दुक्ख-कष्ट भी हुए कई दूने
कभी मिलेंगे
तब बतायेंगे
क्या कुछ नहीं सहा