भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा प्यार / मनमोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह स्त्री डरी हुई है
इस तरह
जैसे इसी के नाते
इसे मोहलत मिली हुई है

अपने शिशुओं को जहाँ-तहाँ छिपा कर
वह हर रोज़ कई बार मुस्कुराती
तुम्हारी दूरबीन के सामने से गुज़रती है

यह उसके अन्दर का डर है
जो तुममें नशा पैदा करता है

और जिसे तुम प्यार कहते हो