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तुम्हारी छाया में / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
जीवन की ऊष्मा की
याद भी बनी है जब तक
तब तक मैं
घुटने में सिर डालकर
नहीं बैठूँगा सिकुड़ा–सिकुड़ा
भाई मरण
तुम आ सकते हो
चार चरण
छलाँगें भरते मेरे कमरे में
मैं ताकूँगा नहीं
तुम्हारी तरफ़ डरते–डरते
आँकूँगा
जीवन की नयी कोई छाँव
तुम्हारी छाया में!