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तुम्हारी याद तो / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
तुम्हारी याद तो
आई बहुत है
जहाँ हर द्वार
दरबानों के पहरे
चमकती गाड़ियाँ
बँगले सुनहरे
वहाँ रिश्तों में
तन्हाई बहुत है
नदी चुप है
समंदर बोलते हैं
सभी दौलत से
सपने तौलते हैं
हाँ, मंज़िल भी
तमाशाई बहुत है
नक़ाबों से ढँके हैं
सारे चेहरे
छुपा रखे हैं सबने
राज़ गहरे
है इंसां एक
परछाई बहुत है
दिखाने के बचे
सब रिश्ते नाते
ज़ुबां पर हों
भले ही मीठी बातें
यूँ सम्बन्धों में तो
खाई बहुत है
ज़ुबां है मौन
मंज़र बोलते हैं
यहाँ इमां
ज़रा में डोलते हैं
सच की राहों में तो
काई बहुत है
तुम्हारी याद तो
आई बहुत है